मेरी गाफिल तबियत को मकामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
ज़माने के फरेबों का नशा सर से उतर जाए.
तेरे जलवे वहीँ देखूं नज़र मेरी जिधर जाए .
मुझे अपनी नज़र से वो पयामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
जो तेरे मैकदे नेमते उज़मा अता की है.
मेरे जैसे बहकते पर इनायत बरमला की है.
उसी नेमत के सदके अह्तरामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
ज़माने के फरेबों का नशा सर से उतर जाए.
तेरे जलवे वहीँ देखूं नज़र मेरी जिधर जाए .
मुझे अपनी नज़र से वो पयामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
जो तेरे मैकदे नेमते उज़मा अता की है.
मेरे जैसे बहकते पर इनायत बरमला की है.
उसी नेमत के सदके अह्तरामे होश दे साकी.
में आऊ होश में जिस से वो जामे होश दे साकी.
बेहतरीन ग़ज़ल, बेहद उम्दा लिखा है हबीब भाई!!!
ReplyDeletethanks shahnawaz bhai
Deletehabib bhaaee halka tha jhataka jor se laga. ati sundar.
ReplyDelete