गज़ल
जिसे हम कहते हैं दुनिया वो इक दुनिया ख्याली है
बड़ी दिलकश है उपर से मगर अन्दर से ख़ाली है
हकीक़त पर न कादिर हो ख्यालों पर तो कादिर है
हर इक इन्सान की बस इसलिए दुनिया निराली है
भला ऐसी नमाज़ों से जनाबे शेख़ क्या हासिल
सलामत दाग है दिल का जबीं सजदों से काली है
है दावा बंदगी का पर तलब है हूरो-गुल्मां की
ये कैसी बंदगी है जो अभी तक दिल सवाली है
वही हसरत करें उक्बा मैं तेरी दीद की या रब!
जिन्हें लगता है यह दुनिया तेरे जलवों से खाली है
ज़्यादा हो गया मुश्किल किताबे हुस्न को पढ़ना
ये जब से अक्ल मंदों ने लुग़त अपनी निकाली है
झुका कर पाए जानां पर जबीने शौक को मैंने
हबीब अपनी हकीक़त की हकीक़त आप पाली है
غزل
جسے ہم کہتے ہیں دنیا وہ اک دنیا خیالی ہے
بڑی دل کش ہے اپر سے مگر اندر سے خالی ہے
حقیقت پر نہ قادر ہوخیالوں پرتو قادر ہے
ہر اک انسان کی بس اس لئے دنیا نرالی ہے
بھلا ایسی نمازوں سے جناب شیخ کیا حاصل
سلامت داغ ہے دل کا جبیں سجدوں سے کالی ہے
ہے داعوہ بنذگی کا اورطلب ہے حور و غلماں کی
یہ کیسی بندگی ہے جو ابھی تک دل سوالی ہے
وہی حسرت کریں عقبہ میں تیری دید کی یا رب
جنہیں لگتا ہے یہ دنیا ترے جلوں سے خالی ہے
زیادہ ہوگیا مشکل کتاب حسن کو پڑھنا
یہ جب سے عقل مندوں نے لغت اپنی نکالی ہے
جھکاکر پائے جاناں پر جبین شوق کو میں نے
حبیب اپنی حقیقت کی حقیقت آپ پالی ہے
शब्दों के अर्थ:
ख्याली, (विचार)
दिलकश, (दिल को खीचने वाली)
हकीक़त, (वास्तव)
कादिर, (सक्षम)
जबीं, (माथा)
हूरो-गुल्मां, (स्वर्ग की अप्सराएँ)
उक्बा, (स्वर्ग)
लुग़त, (शब्दकोश)
पाए जानां, (यार के पैर )
हबीब कविशी
हबीब कविशी